
पटना ( एम ए न्यूज डेस्क ) भूमि विवादों को कम करने और भूमि अभिलेखों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बिहार सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। भूमि और निबंधन से जुड़े सभी दस्तावेजों को डिजिटाइज करने की व्यापक प्रक्रिया शुरू की गई है। यह कार्य तीन चरणों में पूरा किया जाएगा, जिसके तहत कुल 4.17 करोड़ से अधिक दस्तावेजों को डिजिटल रूप से संरक्षित किया जाएगा।
मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के अनुसार, पहले चरण में वर्ष 1990 से 1995 तक के 50 लाख से अधिक दस्तावेजों को डिजिटाइज किया जाएगा। इस कार्य के लिए अप्रैल 2025 से पांच एजेंसियां काम कर रही हैं। विभाग का लक्ष्य जुलाई 2025 तक इस चरण को पूरा करना है।
विभाग के अनुसार, दूसरे चरण में 1948 से 1990 तक के 2.23 करोड़ दस्तावेज और तीसरे चरण में 1908 से 1947 तक के 1.44 करोड़ से अधिक दस्तावेज डिजिटाइज किए जाएंगे। विभाग के पास 1796 से अब तक के दस्तावेज कागज के रूप में मौजूद हैं, जिनमें 99 प्रतिशत दस्तावेज जमीन से जुड़े हैं।
ऑनलाइन होगी दस्तावेजों तक पहुंच
महानिरीक्षक निबंधन रजनीश कुमार सिंह ने जानकारी दी कि निबंधित दस्तावेजों के डिजिटल होने से नागरिक घर बैठे इन्हें देख और डाउनलोड कर सकेंगे। इससे खासकर वरिष्ठ नागरिकों को बड़ी राहत मिलेगी। उन्होंने बताया कि दस्तावेजों को स्कैन कर, उनकी जानकारी अपलोड कर और फिर उन्हें सार्वजनिक किया जा रहा है। इस प्रक्रिया से पारदर्शिता बढ़ेगी, विवाद घटेंगे और भू माफियाओं की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा।
चकबंदी गांवों में भू अर्जन विवादों का समाधान
वहीं, चकबंदी किए गए गांवों में भू अर्जन के दौरान उत्पन्न हो रही जटिलताओं के समाधान के लिए भी राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने दिशा निर्देश जारी किए हैं। अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने सभी जिलों के समाहर्ताओं को निर्देश दिया है कि खतियान, जमाबंदी और दखल कब्जा में यदि अंतर हो तो मुआवजा वास्तविक कब्जाधारी रैयत को ही दिया जाए।
बिहार चकबंदी अधिनियम, 1956 के तहत 5657 गांवों में चकबंदी की प्रक्रिया शुरू की गई थी, जिनमें 2158 गांवों में प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। परंतु कई स्थानों पर अभी भी पुरानी सर्वे खतियान के आधार पर कब्जा बना हुआ है। इससे मुआवजा वितरण में अड़चनें आ रही थीं। अब जिला भू अर्जन पदाधिकारी आत्मभारित आदेश जारी कर वास्तविक कब्जाधारी को मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू करेंगे, भले ही खतियान या जमाबंदी से उसका नाम मेल न खाता हो। इसके लिए विधिक परामर्श प्राप्त किया गया है और संबंधित अधिनियमों में संशोधन प्रक्रिया भी जारी है। संशोधन की प्रतीक्षा किए बिना यह अंतरिम समाधान लागू किया गया है