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दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्रकार को सुरक्षा देने का आदर्श दिया, मध्य प्रदेश पुलिस की धमकियों के बाद राहत !

दिल्ली (एम ए न्यूज) प्रेस स्वतंत्रता पर बढ़ते हमलों के बीच दिल्ली हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
पत्रकारों के लिए न्याय की उम्मीद: बर्बरता और डर के माहौल में राहत की किरण

नई दिल्ली, (आरएनएस ) । पत्रकारों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बल देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को स्वराज एक्सप्रेस न्यूज चैनल के भिंड ब्यूरो प्रमुख अमरकांत सिंह चौहान को दो महीने की पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया है। अमरकांत चौहान ने चंबल क्षेत्र मेंअवैध रेत खनन पर रिपोटिंग के बाद मध्य प्रदेश पुलिस अधिकारियों द्वारा दी जा रही धमकियों से राहत की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था ।न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा की एकल पीठ ने दिल्ली पुलिस को तत्काल सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया, साथ ही अमरकांत चौहान को सलाह दी कि वह आगे की कानूनी कार्यवाही के लिए मध्य प्रदेश के क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करें। इस मामले में पत्रकार की ओर से अधिवक्ता वारिशा फारासत, अधिवक्ता तमन्ना पंकज, अनिरुद्ध रमणाथन और प्रिया वत्स कर रहे थे। याचिका में उल्लेख किया गया कि चौहान ने जान के खतरे के कारण मध्य प्रदेश छोड़ दिया था और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया तथा एनएचआरसी से भी सहायता मांगी थी। यह राहत उस समय आई है जब मध्य प्रदेश में पत्रकारों के खिलाफ पुलिस उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। चौहान सहित कई अन्य पत्रकार — धर्मेंद्र ओझा ( न्यूज 24 ), शशिकांत गोयल (बेजोड़ रत्ना) और प्रीतम सिंह (एनटीवी भारत ) – को उनके संवेदनशील खुलासों के बाद भिंड एसपी कार्यालय तलब किया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, इन पत्रकारों के साथ मारपीट की गई, कपड़े उतरवाए गए, मोबाइल फोन जब्त किए गए और दबाव में झूठे कबूलनामे रिकॉर्ड करवाए गए। चौहान की याचिका में आरोप लगाया गया कि उन्हें और साथी पत्रकार शशिकांत जाटव को पुलिस ने जबरन यह बयान देने को मजबूर किया कि “मामला सुलझ गया है”। पत्रकारों का कहना है ! यह सब स्वतंत्र मीडिया को चुप कराने की एक संगठित कोशिश है। प्रेस क्लब के मेंबर व पत्रकार मनोज कुमार शर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, हमध्य प्रदेश में जिन पत्रकारों के साथ यह हुआ, वह न सिर्फ प्रेस पर सीधा हमला है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों का गंभीर उल्लंघन भी है। मारपीट, धमकियां और जबरन कबूलनामे, पुलिस सत्ता का खतरनाक दुरुपयोग हैं। दिल्ली हाई कोर्ट का यह आदेश निश्चित रूप से राहत देने वाला है ।म्मीद है यह न्याय की शुरूआत बनेगा । असली दोषियों को, चाहे वे कितने भी ताकतवर क्यों न हों, जेल के अंदर होना चाहिए । अब मध्य प्रदेश के पत्रकारों ने स्वतंत्र न्यायिक जांच, दोषी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई, और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक विशेष कानून बनाने की मांग की है। जब तक कानूनी कार्यवाही आगे बढ़ती है, हाई कोर्ट का यह फैसला उन तमाम पत्रकारों के लिए उम्मीद की एक किरण है, जो सत्ता से सच बोलने का साहस करते हैं।

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