एम ए न्यूज डेस्क
जिला मुख्यालय से पश्चिम चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित सदर प्रखंड के मंदना गांव में कई वर्षों से अद्भुत और अनूठी होली मनाई जाती है। खास बात यह है कि इस इस गांव में पड़ोसी जिले लखीसराय के भानपुर गांव के लोग यहां पहुंचते हैं और फिर दोनों गांव के ग्रामीण संयुक्त रूप से स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में पूजा पाठ करते हैं, जिसके बाद इस गांव के लोग होली मनाते हैं। इस अनोखी होली को देखने के लिए गांव में होलिका दहन से लेकर रंगोत्सव तक हजारों की भीड़ लगती है। गांव में अनोखी होली कब से मनाई जा रही है, इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिल रहा है। लेकिन गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मैं अपने दादा के काल से इस तरह का होली मनाते देख रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि होली पर्व में 2 दिनों तक मांसाहारी भोजन एवं लहसुन प्याज का सेवन पूरी तरह से वर्जित होता है। इस संबंध में स्थानीय ग्रामीण दीपक कुमार बताते हैं कि यह परंपरा उनके गांव के पूर्वजों से चलता आ रहा है जब तक पड़ोसी लखीसराय जिले के भानपुर गांव के लोग मंदना गांव नहीं पहुंचते हैं तब तक इस गांव में होली नहीं मनाया जाता है।
मंदना गांव के लोग भानपुर गांव के लोग को बुलाने का भेजते हैं निमंत्रण
मंदना गांव की अनूठी होली की शुरुआत निमंत्रण से होती है। इसमें मंदना गांव के लोग एक सप्ताह पहले भानपुर गांव जाकर होली पर मंदना गांव आने का न्योता देते हैं। भानपुर गांव के ग्रामीणों को यहां पहुंचने के बाद यहां के प्राचीन हनुमान मंदिर में दोनों गांव के लोग एक साथ मिलकर पूजा अर्चना करते हुए कलश की स्थापना कर रामधुनी कार्यक्रम करते हैं। रामधुनी कार्यक्रम समाप्त होने के बाद ध्वजारोहण आरती होता है। उसके बाद ऐतिहासिक हनुमान मंदिर के पास होलिका दहन होता है। होलिका दहन से पहले दोनों गांव के लोग मिलकर भक्ति गीतों पर झूमते हैं। होली के दिन हनुमान मंदिर में ध्वजारोहण होता है और पिचकारी से ध्वजा पर रंग चढ़ाने के साथ होली शुरू हो जाती है। फिर दोनों गांव के लोग एक साथ मिलकर रंग गुलाल खेलते हैं तथा यहां से प्रसाद खाने के बाद ही घर में मांसाहारी भोजन अथवा लहसुन प्याज का उपयोग करते हैं।
निमंत्रण नहीं देने पर होती है अनहोनी
गांव के लोग बताते हैं कि निमंत्रण नहीं देने और लेने पर दोनों गांव में अनिष्ट होना शुरू हो जाता है। करीब दो दशक पहले निमंत्रण के बाद भी भानपुर गांव के लोग मंदना गांव नहीं आए थे। इस वजह से होलिका दहन के दिन ही भानपुर गांव के दर्जनों घरों में आग लग गई थी। जिसके बाद लोग इसे भगवान का प्रकोप समझते हुए आनन-फानन में शेखपुरा के मंदना गांव पहुंचे और पूजा-पाठ शुरू किया तब जाकर आगजनी की घटना शांत हुई। उस दिन के बाद लगातार यह परंपरा चालू है।
कैसे शुरू हुई या परंपरा
इन दोनों गांव के अनूठी होली के पीछे की कहानी बताते हुए गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि काफी साल पहले मंदना और भानपुर गांव के दो युवकों में गहरी दोस्ती थी, भानपुर गांव के दोस्त को बुलाने पर दोनों गंगा स्नान करने गए थे। स्नान के दौरान ही गंगा नदी से कांस्य की हनुमान की प्रतिमा मिली थी। जहां भानपुर गांव के दोस्त ने मंदना गांव के दोस्त को प्रतिमा देते हुए होली के मौके पर निमंत्रण देने को कहा था। इसके बाद से ही हर साल होली के मौके पर इस परंपरा का पालन किया जा रहा है।